लेखनी कविता - वो क्या है माँ
एक सवाल का जवाब जो एक बेटी चाहती हैं पाना समाज से भी माँ से भी???
कुछ खास अपनों से इतना डर गए हम
कि बचपन में ही बिखर गए हम...
आते-जाते रास्तों पर
हम दुपट्टे संभालते रहते हैं
नज़र ना पड़े तुम्हारी इसलिए हम ख़ुद को
तुम्हारी नज़रो से टालते रहते हैं..
नजरे झुकाए कई सारी टिप्पणियों से गुजरते हैं
और पिता की इज्जत पे आंच न आये..
इसलिए अपनी इज्जत को राख करते हैं..
हर बत्तमीजी को चुप-चाप सहते हैं..
और किसी से कुछ नहीं कहते हैं..
जब घुटन एक रोज हद से बढ़ गई
मेरी भी चुप्पी अपने आप बिखर गई
मैं गई माँ के पास
अपना गम साफ-साफ बताने..
अपना दर्द उन्हें जताने..
सुन कर,उनका जवाब
गुज़रे मुझमें कई जमाने..
हर युग में हर माँ ने यही कहा होगा...
शायद इसलिए दर्द कलम के ज़रिए
रो रहा होगा..
वो रास्ता बदल दे
वो दुकान छोड़ दे
उस टीचर से पढ़ना बंद कर दे
उस भैया के घर मत जाया कर
और थोड़ा,ख़ुद को कम सजाया कर..
मेरे होंठ चुप थे
मेरी आत्मा चीख़ रही थी....
न जाने कितने सवाल चल रहे थे,मेरे मन में
मैं जिनका जवाब ढूंढना चाहती थी..
ये सजना-सवरना गलत है क्या माँ ?
और अगर,इस वक्त गलत है..
तो उस वक्त का क्या..
जब ढूंढ के एक लड़के को लाती हो
उसके लिए हमें सजाती हो ....
हमें एक सामान सा बनाती हो
और उसके सामने पेश कर आती हो
वो क्या है माँ...
अपूर्वा शुक्ला✍✍✍✍
# प्रतियोगिता
# स्वैच्छिक
Gunjan Kamal
15-Nov-2022 06:35 PM
शानदार
Reply
Khushbu
11-Nov-2022 11:01 AM
यथार्थ चित्रण
Reply
Apoorva Shukla
11-Nov-2022 07:52 PM
धन्यवाद 🙏
Reply
Shashank मणि Yadava 'सनम'
11-Nov-2022 06:56 AM
अहा,,, क्या कहने,,, बहुत ही खूबसूरत,,, वाकई में सोचने पर विवश करती हुई कविता
Reply
Apoorva Shukla
11-Nov-2022 07:52 PM
शुक्रिया🙏
Reply